महालया का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। इस दिन को नवरात्रि और पितृ पक्ष का संधिकाल कहा जाता है। इस दिन माता दुर्गा की वंदना करके उनसे अपने घर आगमन के लिए प्रार्थना की जाती है
और पितरों को जल तिल देकर उन्हें नमन किया जाता है और उनसे विनती की जाती है कि आप अपने लोक में आनंद से रहें और हम पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें। इस तरह महालया का महत्व हिंदू धर्म में सदियों से रहा है।
मान्यता है कि नवरात्र में देवी पार्वती अपनी शक्तियों और नौ रूपों में पृथ्वी पर आती हैं। इनके साथ इनकी सहचर योगनियां और पुत्र गणेश एवं कार्तिकेय भी पृथ्वी पर पधारते हैं। पृथ्वी को देवी पार्वती का मायका कहा जाता है।
माता अपने मायका में आती हैं और नवरात्र के नौ दिनों में पृथ्वी पर वास करते हुए आसुरी शक्तियों का भी नाश करती हैं।
माता हिमालय की पुत्री हैं और हिमालय पृथ्वी के राजा थे इसलिए माता को नवरात्र में पुत्री रूप में भी पूजा जाता है और कन्या भोजन करवाया जाता है। लेकिन जगत के पिता महादेव की पत्नी होने के कारण देवी पार्वती जगत माता के रूप में भी पूजी जाती हैं और इन्हें माता कहकर भी बुलाया जाता है।
माता का डोली में बैठकर आना ज्योतिषी और धार्मिक दृष्टि से अच्छा नहीं माना जाता है। कहते हैं जैसे डोली डोलते हुए चलती है वैसे ही जिस साल माता डोली में चढकर आती हैं उस वर्ष धरती पर काफी उथल-पुथल की स्थिति मचती है। राजनीति में कई स्थापित सत्ता का परिवर्तन हो जाता है। राजाओं का छत्र भंग होता है यानी उनकी सत्ता चली जाती है। महामारी और रोग का प्रकोप बढता है।